चाहत का परिंदा
चाहत का परिंदा
वो मुझे चाहत का परिंदा बताता है
वो मेरे संग प्रेम गीत गाना चाहता है
मैं तो एक प्रेमी,प्रेम कर्म मेरा
वो तो मुझसे एक रिश्ता जोड़ना चाहता है
मुझको वो जानता है दूर से,पास से भी
मुझको वो चाहता है याद में, एहसास से भी
मेरे दिल में प्रेम के लिये जगह है बहुत
वो मेरे दिल में अब बसना चाहता है
गुमशुम सा है वो, कुछ है बेचैन सा
लग रहा है उसे दिखता हूँ हर जगह एक रूप सा
मैं तो कोई करिश्माई बंदा भी नही हूँ
वो मेरा हमसफ़र बनना चाहता है
उसने छोड़ा सारा जमाना मेरे खातिर
तज के आई सारी शर्म-ओ-हया मेरे खातिर
उसको लगता है मैं बना हूँ उसके लिये
वो मेरे आशियाने में रहना चाहता है।