चाहना पाना औऱ खोना
चाहना पाना औऱ खोना
दिल पाश हुआ तो क्या हुआ
जो अपना था वो पराया हुआ
मेरी कश्ती बीच मजधार में फसी रही
वहीं से मुझे किनारे का नज़ारा हुआ
ये आती जाती हवाएँ कुछ कहती है मुझसे
तुमने जिसे चाहा वो कब तुम्हारा हुआ
क्यूँ फिरता है मंदिर मस्जिद ये कहा खुदा ने मुझसे
देख ख़ुद मे मैं तो हूँ तेरे अंदर ही कही समाया हुआ
जिसे तुम देखो वो तुम्हें वापस ना देखे तो क्या फ़ायदा
मेरी तारीफ़ का आख़िरी अंश भी उसी पे जाया हुआ
मुझसे जब भी मिल अपनी बाहे खोल के मिल
यूँ ना दिखा की मैं हु एक मंज़र भुलाया हुआ