चाहे दरमियाँ दरारें सही...
चाहे दरमियाँ दरारें सही...


दरिया में तैरती बोतल में बंद खतों की,
पलकों से लड़ी बेहिसाब रातों की,
नम हिना की नदियों में बह रहे हाथों की,
फिर कभी सुनेंगे हालातों की
पहले बता तेरी आँखों की
मानूँ या तेरी बातों की ?
चाहे दरमियाँ दरारें सही !
ये दिल गिरवी कहीं,
ये शहर मेरा नहीं!
तेरे चेहरे के सहारेअपना गुज़ारा यहीं।
जी लेंगे ठोकरों मेंचाहे दरमियाँ दरारें सही !
नफ़रत का ध्यान बँटाना जिन आँखों ने सिखाया,
उनसे मिलने का पल मन ने जाने कितनी दफा दोहराया
जिस राज़ को मरा समझ समंदर में फेंक दिया,
एक सैलाब उसे घर की चौखट तक ले आया
फ़िजूल मुद्दों में लिपटी काम की बातें कही,
चाहे दर
मियाँ दरारें सही !
किस इंतज़ार में नादान नज़रे पड़ी हैं ?
कौन समझाये इन्हें वतन के
अंदर भी सरहदें खींची हैं !
आज फिर एक पहर करवटों में बीत गया,
शायद समय पर तेरी यादों को डांटना रह गया।
बड़-बड़ बड़-बड़ करती ये दुनिया जाली,
कभी खाली नहीं बैठता जो वो अंदर से कितना खाली।
माना ज़िद की ज़िम्मेदारी एकतरफा रही,
पर ज़िन्दगी काटने को चंद मुलाक़ात काफी नहीं
ख्वाबों में आते उन गलियों के मोड़,
नींद से जगाता तेरी यादों का शोर।
मुश्किल नहीं उतारना कोई खुमार,
ध्यान बँटाने को कबसे बैठा जहान तैयार!
और हाँ एक बात कहनी रह गयी
काश दरमियाँ दरारें होती नहीं।