चाह तेरे साथ की
चाह तेरे साथ की
कितना मुश्किल है
तुम बिन जीना
फिर ढो रही हूँ
इन सांसों का बोझ !
खुद को कितना भी
व्यस्त रखूँ
उलझाए रखूँ
दिनभर कामों में
मुश्किल है तुमसे अलग हो
दिल का धड़कना !
फिर भी धड़कता है दिल
हर धड़कन
तेरी याद दिला जाती है
साथ चलने का तुम्हारा वादा टूटा
फिर भी टूटी नहीं मैं।
बस कर रही तपस्या
तुमसे पुनः मिलन हो
सात जन्मों का नहीं
जन्मों जन्मों का साथ है हमारा।
ये आँखे भीग जाती है अक्सर
और लुढ़क जाते हैं
आँख के कोरों से नीर
हर बात में,
जो तुम याद आ जाते हो
काश !
कि साथ तुम्हारे
मैं भी जा पाती
ये जिम्मेदारी बच्चों की
जो मुझपे तुम छोड़ न जाते,
बस दुआ करूँ अब हर पल
तुम तक
मेरी रूह पहुँचे
जन्म लूँ
या न लूँ
बस तेरा साथ चाहूं,
हर पल व्रत,उपवास
पूजा अब भी करती हूँ
सिर्फ पुनः तेरे सानिध्य के लिए।
