बज़्म
बज़्म


आज फिर टक्कर होगी आसमान में,
हमारा चांद भी तैयार होकर निकला है।
*
ज़ख्म देकर मुझे वो मेरे साथ ही रोता है,
तन-ए-तन्हा हूँ फिर भी वो मेरे साथ होता है..
वो भागता है मेरे साए से भी ये कहते कहते,
उल्फ़त का मारा हर पल ख़ाली हाथ होता है।
*
है रात इनायत से रोशन,
महबूब की मेरे ए मौला।
करूंगा इबादत तेरी भी,
गर रज़ा मेरे महबूब की हो।
*
हर वक़्त ख्यालों में मेरा नाम रखते है,
तस्वीर मेरी हाथों में सुबहों शाम रखते है।
जता देते है दुनिया को यूँ इश्क़ अपना,
मुझे खामख्वाह ही बदनाम करते है।
*
यूँ तो दिन भर हमे और कोई काम ना था,
इश्क़ था बस और दिन भर हमे आराम ना था।
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दीवानगी भी इतनी आसान कहा है दानिश,
बड़ी उकूबत है इस राह मे कोई एह्तमाम नहीं।
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रात करने को रोशन सितारे ढूंढने निकला,
पड़ी निगाह उनकी तो चाँद जगमगा उठा।
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लिख दूंगा जज्बात मैं पन्ने पे,
गर वक़्त मिले तो पढ़ लेना।
भा जाये अगर अल्फाज़ मेरे,
कोई प्रेम कहानी गढ़ लेना।
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फिर जज्बातों को कर सुपुर्द ए खाक आया हूँ,
सुबह जो मैं तो सूरज था अब बस सितारों का साया हूँ।
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दिख रहे चेहरो पे झूठे नकाब,
गमे इश्क पे खुशियों का पर्दा बखुबी है।
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यूँ बिखर जाए तेरी याद भी रेज़ा रेज़ा,
जिस तरह ख्वाब मेरे बिखरे तेरे जाने से।
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गुलिस्ताँ में भी अब दिखते है वो शादाब कहाँ,
दिल इतने टूट कर फूलों से जो बिखरे है वहाँ।
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रूह झुक जाने को बेताब है,
और तुम साख की फिकर करते हो।
हम देना चाहते है दिल तुमको,
और तुम बस मुस्काने नज़र करते हो।
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ए रात तू यूँ ही ठहर जा,
अभी ख्वाब और है देखने को।
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हमने तो मोहलत दे दी थी,
जख्मों को भर जाने की।
वो लौट आये फिर लेकर,
अपने हाथों में हथियार नये।
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ख्वाब फिर रात दूंढ लेंगे,
चले आने को।
जिक्र तेरा,
कभी लबों पे मेरे जो आया।
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अमावस रात भी होती है पूनम की सी रौशन,
दीदार-ए-करम जो नज़र आपका चेहरा होता है।
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मेरी तन्हाईयों का अक्सर मुझसे ये सवाल होता है,
क्या उन्हें भूले से भी कभी मेरा ख्याल होता है ?
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ज़ख्म देकर मुझे वो मेरे साथ ही रोता है,
तन-ए-तन्हा हूँ फिर भी वो मेरे साथ होता है..
वो भागता है मेरे साए से भी ये कहते कहते,
उल्फ़त का मारा हर पल ख़ाली हाथ होता है।
*
है रात इनायत से रौशन,
महबूब की मेरे ए मौला।
करूंगा इबादत तेरी भी,
गर रज़ा मिरे महबूब की हो।
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हर वक़्त ख्यालों में मेरा नाम रखते है,
तस्वीर मेरी हाथों में सुबहों शाम रखते है।
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जता देते है दुनिया को यूँ इश्क़ अपना,
मुझे खामख्वाह ही बदनाम करते है।
*
था इश्क़ कभी तुमसे हमको,
अब तो बस फुर्क़त है हासिल।
है रात वो मुंतज़िर अब हमको,
हो प्यार ये फिर से जो कामिल।
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दिल शगुफ़्ता है हाथों में गुलाब देखकर,
खुद पर उनका एख्तियार देखकर।
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इन हवाओं ने जाने है रुख क्या अख्तियार किया,
हर ओर से उसकी खुशबुएं लबरेज किये रहती है।
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राहगीर कई मिले हमसफर कोई ना मिला,
राह खत्म होने तक हम इश्तियाक़ में ही रहे।
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नींद नहींं है आँखों में,
और कोई ख्वाब फिराक में है आने के,
तेरी खबर नहींं कोई आने की,
और चांद फिराक में है बादलों में छुप जाने के।
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खिड़कियों पे चांद देखने के कयास में रहते है,
हम उन गलियों में जाने को बहाने के तलाश में रहते है।
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जहाँ जमीन से आसमान मिलता हो,
चले आना,
हमसे मुलाकात अब वहीं होगी।
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मोहब्बत में शिद्दत ना थी,
तो बस ख्वाब में दिदार तेरा होता था,
अब तो अपने अक्स में भी,
बस तू ही नज़र आता है।
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जो तेरी आंखें कहती है,
वही तेरे होठ भी केह देते तो क्या बात होती।
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कभी चाहो लौटना अगर तो ये ख्याल रखना,
हमने बदलना छोड़ दिया है जमाने के लिये।
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अपने चेहरे के मुखौटों को हटाए ना आप,
आपके चेहरे को गम छुपाने का फन नहींं आता।
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उसके आगे है आशिकों की फेहरिश्त लगी,
मैंं फिर भी इससे अंजान बना फिरता हूँ।
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लो अब हमने भी उन गलियों में जाना छोड़ दिया,
दिल में ही दब गया इश्क़ कही हमने वो फसाना छोड़ दिया।
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रात को सितारे नज़र नहींं आते अब,
सारा शहर कर रखा है रौशन इन्सान ने।
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कभी जो जुगनुओं से नुमाया थी बस्ती,
आज वहाँ बल्बों की फेहरिश्त लम्बी है।
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उस शक्स को ढूंढा हमने हर मजार पर,
जिसकी दुआओं में भी कभी हमारा जिक्र ना था।
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तुम किताबों में उसका नाम छुपा लेते हो,
तो समझते हो बड़ा इश्क़ जता देते हो।
ऐसे आशिक़ तो उसके लाखों है जमाने में,
और तुम यूँ ही खुद को मीर बता देते हो।
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वो ताऊम्र सवालों में उलझाता रहा हमे,
करता कबूल कैसे था इश्क़ उसे भी।
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सितारों की छाँव फीकी लगने लगी है अब,
हमारा चांद बादलों में छुपा जो है।
फिर मजबूरियों ने रोक लिये वो कदम,
जो चले थे बाज़ार खिलौने खरीदने।
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क्यूँ हवाओं में है ये खुशबू,
क्यूँ फिजाएँ यूँ महकती है,
क्या अभी जहाँ पे हो तुम,
वहाँ जुल्फ अपनी बिखेरी है?
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चलो फिर लकीरों से समझौता कर लेते है,
तुम चले जाओ हम याद करेंगे।