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Geeta Upadhyay

Inspirational

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Geeta Upadhyay

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बवंडर का रुख सब मिलकर बदलो

बवंडर का रुख सब मिलकर बदलो

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 "बवंडर का रुख सब मिलकर बदलो"

छलनी किए हैं सीने

 कभी न भरने वाले घाव दिए हैं 

इस वायरस में तो बिना बम गोला बारूद

दुनिया में जबरदस्त विस्फोट किए हैं


कलयुग है ये दोस्तों कहां संजीवनी

लेने हनुमान जी पर्वत पर चढ़े हैं

नमन उन योद्धाओं को जो अपनी जान

मुश्किल में डाल सेवाओं की मशाल लिए खड़े हैं


उन्हें कौन समझाए जो मास्क और दूरी को

समझ के आफत अपनी जिद पर अड़े है

वैश्विक महामारी के दौर में इंसाफ सूखे पत्तों से झड़े हैं

श्मशानोंऔर कब्रिस्तानों में लाशों के ढेर पड़े हैं

ये किसी की नहीं सगी चाहे आप छोटे या बड़े हैं


 अभी खत्म नहीं हुई है बीमारी

 कश्मीर से कन्याकुमारी

 कैद में है दुनिया सारी

ना जाने कौन सा

 सैलाब आने की तैयारी

रोनकें लगी है खूब शहर में 

त्योहारों की धूम है बाजार खचाखच भरे है


किस छोर से पकड़े तुझे ऐ जिंदगी 

लगता है कि सब मौत की दहलीज पर खड़े है 

माना के तोपो से नहीं डरते

गोलो से नहीं डरते

अपनों के खातिर हम क्या-क्या नहीं करते


डरना जरूरी है अपने और अपनों के लिए

नन्हे मासूम सपनों के लिए

रुको ठहरो सोचो समझो 

घर को संभालो और खुद भी संभलो

 इस आते हुए 

"बवंडर का रुख सब मिलकर बदलो।"


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