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Shishpal Chiniya

Inspirational

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Shishpal Chiniya

Inspirational

बूंद की पुकार

बूंद की पुकार

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सोचना भी दुष्कर है पानी की बूंद के बिना

गर ना जागे तो कैसे जी पाएंगे इसके बिना।


क्या होगा जब पानी की आखिरी बूंद सूख जायेगी

न पेड़ होगा न फूल कलिया प्रकृति भी रूठ जाएगी।


धरा में दरारें अम्बर में सूनापन छा जाएगा

फिर बंजर वन में मानव क्या तू जी पायेगा।


निराशाऐं हताशाऐ जीवन मौत के अर्पण में

दृश्य ऐसे जैसे हम खुद को देखे टूटे दर्पण में।


तालाब सरोवर समुन्द्र कैसे दिखेंगें निशान

वन कानन खेत खलिहान होगें सब विरान।


गल्ली मोहल्ला गाँव कचहरी दिखेंगें हैरान

वाह! रे स्वयं के भक्षक हसं रहा है इंसान।


जीते जी जीवन का डेरा पानी की आखिरी बूंद

आशांओ का रैन बसेरा पानी की आखिरी बूंद।


वो आशांएँ जो हाथ धरे किसान लिये बैठा है

वो अभिलाषाएँ जो प्यासा पंखेरू लिये बैठा है।


समय अभी बचा ले तू इस जीवनधार को

कर संचय मत खो अपने इस आधार को।


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