बूढ़ा बरगद
बूढ़ा बरगद
वो पहला प्यार, बूढ़े बरगद का
वो तुतलाना, छोटी सी कोंपल का !
वो अपनी छांव में उसको घंटों सहलाना,
सूखी शाखा का हरी पत्तियों से बतियाना !
सूरज की हल्की धूप में सजाना,
उसे हर ज़ालिम कदम से बचाना !
झड़ती पत्ती गिराकर उसकी टहनी का बल आंकना,
उसकी चढ़ती हुई जवानी को अभिमान से ताकना !
उसके बढ़ने में, बाधा बनी अपनी जड़ों को काटना,
फिर राख बन, खाद बन, याद बन उसे सींचते जाना !
वो भूल जाना, साथ हर पल का,
वो पहला प्यार, बूढ़े बरगद का।