" बुलंद हौसला "
" बुलंद हौसला "
हम इस काबिल
भला हैं कहाँ
जो कोई हमारी
पीठ ठोके !
हमारी भंगिमाओं
को देखकर
कोई दो प्रेम के
शब्दों ही बोले !
अभिनेता तो हम
शायद ही बन
पाएंगे पर थोडा
अभिनय कर लेते हैं !
लेखक तो हम
ना बन पाए पर
कागज पर
कुछ लिख लेते हैं !
मजे हुए अभिनेता
का अभिनय सब
देखा करते हैं !
अच्छे लेखक की
लेखनी को अच्छी
तरह लोग पढ़ते हैं !
नेता तो कभी ना
बन पाए पर ना
गतिविधिओं से
ही जुड़ पाए !
ना विचारों को
कोई जान सका
ना उनको
कोई पढ़ पाए !
कला का भी हमको
ज्ञान नहीं
लोगों की
पहचान नहीं !
पैतरा तो हम
कर लेते हैं
पर हम सही
पहलवान नहीं !
हर नाचीज के
दिन भी कभी लौट
के आते हैं तब
बिगड़ी हुयी
हालात सुधर जायेंगे !
हमें तो तैरना भी
आता नहीं पर बुलंद
हौसला से एक दिन
सात समंदर
हम लाँघ जायेंगे !