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Lakshman Jha

Abstract

4  

Lakshman Jha

Abstract

" बुलंद हौसला "

" बुलंद हौसला "

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हम इस काबिल

भला हैं कहाँ

जो कोई हमारी

पीठ ठोके !

हमारी भंगिमाओं

को देखकर

कोई दो प्रेम के

शब्दों ही बोले !


अभिनेता तो हम

शायद ही बन

पाएंगे पर थोडा

अभिनय कर लेते हैं !

लेखक तो हम

ना बन पाए पर

कागज पर

कुछ लिख लेते हैं !



मजे हुए अभिनेता

का अभिनय सब

देखा करते हैं !

अच्छे लेखक की

लेखनी को अच्छी

तरह लोग पढ़ते हैं !



नेता तो कभी ना

बन पाए पर ना

गतिविधिओं से

ही जुड़ पाए !

ना विचारों को

कोई जान सका

ना उनको

कोई पढ़ पाए !


कला का भी हमको

ज्ञान नहीं

लोगों की

पहचान नहीं !

पैतरा तो हम

कर लेते हैं

पर हम सही

पहलवान नहीं !


हर नाचीज के

दिन भी कभी लौट

के आते हैं तब

बिगड़ी हुयी

हालात सुधर जायेंगे !


हमें तो तैरना भी

आता नहीं पर बुलंद

हौसला से एक दिन

सात समंदर

हम लाँघ जायेंगे !


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