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PRATAP CHAUHAN

Abstract Others

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PRATAP CHAUHAN

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बुजुर्गों की बुलंदी

बुजुर्गों की बुलंदी

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बना था किला जो परसों,

वह कल ही तो "ढहाया" गया हैI

रहता था जहां एक मसीहा,

सुना है वहां !

अब "चिड़ियाघर" बनाया गया है I

इंसान का अहंकार !

जबरदस्त किरदार निभाता गया I

बुजुर्गों की बुलंदी से आहत होकर,

पुश्तैनी विरासत को गिराता गयाI

कह ना सका कभी दो लफ्ज अदा से,

बस माहौल अमन का बिगाड़ता गया I

जहां भी पड़े उसके कदम,

वहां की नजाकत उजाड़ता गया I



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