बुजुर्गों की बुलंदी
बुजुर्गों की बुलंदी
बना था किला जो परसों,
वह कल ही तो "ढहाया" गया हैI
रहता था जहां एक मसीहा,
सुना है वहां !
अब "चिड़ियाघर" बनाया गया है I
इंसान का अहंकार !
जबरदस्त किरदार निभाता गया I
बुजुर्गों की बुलंदी से आहत होकर,
पुश्तैनी विरासत को गिराता गयाI
कह ना सका कभी दो लफ्ज अदा से,
बस माहौल अमन का बिगाड़ता गया I
जहां भी पड़े उसके कदम,
वहां की नजाकत उजाड़ता गया I
