बसुधैव कुटुम्बकम्
बसुधैव कुटुम्बकम्
दर दर मैं भटक गया हूँ,अपने अंदर क्यों ना झांका?
राम यही हैं, कृष्ण यही है,अपने अंदर क्यों न आंका?
सुबह उठा तो,देखा मैंने,गगन में एक ही सूरज था।
शाम ढली,तो छत से देखा,एक ही चंदा मामा था।
जात-पात में किसने बांटा,जब हवा एक सी चलती हैं।
एक ही धरती पर रहते है,एक ही अंबर के नीचे।।
अगर तुम्हारी कलाकारी को,कोई धिक्कारेगा,
तो तुम बताओ अंतर्मन से क्या हर्षित हो पाओगे?
जात-पात में बाँट के क्या शिव का मान बढ़ाया है?
ऊँच-नीच पैदा करके क्या धर्म का तुमने काम क्या?
धर्म यही कहता हैं बंधु-"वसुधैव कुटुम्बकम् "मानो।
जात-पात क्या ऊँच-नीच,हर सब में "राममय" मानो।।