मौत तुझे जब भी आनी हो
मौत तुझे जब भी आनी हो
संघर्षशील दुनिया में उस मोड़ पर खड़ा हुआ, जहाँ मौत से आमना-सामना हुआ
बहुत खुशनसीब था वो, जो हाथ का मोड़कर मिला
मौत तुझे जब भी आनी हो, बेफिक्र हो कर आना झुकोगे तो मुझे ले जाना वर्ना युद्ध से कहाँ मुझे पाओगे।।
सच्चा अगर तू है, तो गलत मैं भी नहीं
हारा अगर तू नहीं , तो घुटने टेके है मैंने कब ?
युद्ध करना हो तो इत्मीनान में करना
पर जब तक झुकोगे नहीं कहाँ मुझे पाओगे, हाथ फैलाना हो, तो बेफिक्र हो कर आना।।
यमपास हो या दधिची की हड्डी ,उसका वार विफल ही जाएगा
नियति के मोड़ में नया मोड़ लाऊंगा कायनात में एक शोर लाऊंगा ,
काल को कालकूट पिलाऊँगा तूफानों को जीतकर शांत कर जाऊंगा
झुकोगे तभी आना, वर्ना युद्ध से कहाँ मुझे पाओगे।।
उद्देश्य, लक्ष्य, कसौटी मेरा सब निहित हैं
कर्म, धर्म, मोक्ष को जीवन के कण-कण में भर जाऊंगा
रहूँ या ना रहूँ अपना एक अलग पहचान छोड़ जाऊंगा
मौत तुझे जब भी आनी हो बेफिक्र हो कर आना झुकोगे तो ले जाना,
वर्ना युद्ध से कहाँ मुझे पाओगे।