बसन्ती हवा
बसन्ती हवा
पात- पात हिल गए,
गात- गात खिल गए।
चली जो बसन्ती हवा,
उनसे नयन मिल गए।।
झर-झर झरना झरा ,
आ चट्टान ऊपर गिरा।
लगता यही दूर से ,
कोई धवल कंगारू खड़ा।
प्यार का सैलाब आया ,
उसमें हम बह गए।।
चली जो बसन्ती हवा ,
उनसे नयन मिल गए।।
सर सर शोभित समां,
मस्ती में ये दिल जवाँ।
लगता हर ओर से,
टपकता हो रस नया।
उनकी बातों को जब देखा,
दिल से हम तो गए।।
चली जो बसन्ती हवा,
उनसे नयन मिल गए।।