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Priti Chaudhary

Abstract

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Priti Chaudhary

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बसंती हवा

बसंती हवा

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जगा गई सोए एहसासों को बसंती हवा,

 महका गई मेरी सांसों को बसंती हवा।


मुरझाए उपवन में एक दिन बहार आती है,

बंजर भूमि पर नेह की फुहार लाती है,

रोशन कर गई अंधेरी राहों को बसंती हवा,

जगा गई गई मृत सभी चाहों को बसंती हवा।


पक्षियों की मधुर कूक मन को भाती है,

डाली पर बैठी मतवाली कोयल इतराती है,

 उपस्थिति से भर देती तन्हा रातों को बसंती हवा,

 बढ़ा देती है भ्रमर -कली की मुलाकातों को बसंती हवा।


नृत्य कर रहे खेतों में सरसों के फूल,

 बुहार दिए प्रकृति ने पतझड़ के शूल

 पूर्ण करती सर्व अभावों को बसंती हवा,

 दूर करती है मन से तनावों को बसंती हवा।


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