बसंत
बसंत
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ऋतुओं का कंत
लो आ गया बसंत
हरियाली की दस्तक
धरती के द्वार
ओढ़े पियरी वसुधा
करती श्रृंगार
थर थर करती ठिठुरन
पायी है अंत
आ गया बसंत
वृक्ष की टहनियों पर
किसलय हैं फूटे
अलियों ने कलियों के
सौरभ हैं लूटे
मलय पवन झोंकों से
सुरभित हैं दिग दिगन्त
आ गया बसंत
रूप खिला अम्बर का
विहँसा कचनार
फिर विरक्त हृदयों में
जाग उठा प्यार
रूप भवन का ऋतुपति
बना है महंत
आ गया बसंत।