बसंत का दर्पण
बसंत का दर्पण
ऋतु राज का अवलौकिक दर्शन
पुष्प गुच्छों के झूमते सरगम
नवल देह तरू वर नव पत्र पहन
तितलियों की चंचल तनमन
बगीया की देखो अद्भुत यौवन
अहा ! बसंत का देखो पीत दर्पण।
अमिया की डाली गुँथीं मंजरी
ख़ुशबू फैली मादक रसभरी
खेत सजी मानो सजनी की पियरी
निहारती प्रकृति प्रेमी संग सुंदरी
अहा ! बसंत का देखो पीत दर्पण।
गेंदा, सरसों की बासंती ओढ़नी से
सींच लूँ मन को बसंत के रंग से
सराबोर हो जाउँ बासंती बयार में
माँ शारदा के आगमन का दस्तक है
धरा ने देखो अद्भुत शृंगार किया है
अहा ! बसंत का देखो पीत दर्पण।
मंद मंद हवाएँ ,शोख़ फ़िज़ाएँ
फाल्गुन के गीत कुहू कुहू गाए
सुर्ख़ टेसू के फूल के रंग से
भीगा तन मन गोरी का प्रेम से।
अहा ! बसंत का देखो पीत दर्पण।
