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Anjana Singh (Anju)

Abstract

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Anjana Singh (Anju)

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बसंत ए बहार

बसंत ए बहार

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देखों री सखी गली गली

महक रही है हर कली

मदमस्त हवा यूं बह रही

शायद बसंत ए बहार आ गई


खेतों में सजी है सरसों पीली

आसमां है नीली नीली

प्रकृति की देख हरियाली

मन कहे बसंत ए बहार आ गई


सजनी मंद मंद यूं मुस्कुराए रही

नैनो में सपने सजाए रही

ऑंचल ये हवा उड़ाए रही

शायद बसंत ए बहार आ गई


रंग बिरंगी बसुन्धरा

प्रेम रंग सुनाए रही

प्यार की उमंगें जगी

शायद बसंत ए बहार आ गई


अमवा की डाल से मधुमाती गंध उठ रही

प्रकृति अपनी सुन्दरता से मीठी रस घोल रही

अलौकिक अनोखी छटा है बिखर रही 

लगता है बसंत ए बहार आ गई

 

कुहू कुहू बोल रही कोयलिया

राधा की झनक रही पायलिया

पनघट पर बैठी कान्हा की राह निहार रही

शायद बसंत ए बहार आ गई


शमां रूहानी सी लग रही

पूरवया पंख डोलाय रही

नए रंग के साथ मधुमास भाए रही

शायद बसंत ए बहार आ गई।


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