बसंत ए बहार
बसंत ए बहार
देखों री सखी गली गली
महक रही है हर कली
मदमस्त हवा यूं बह रही
शायद बसंत ए बहार आ गई
खेतों में सजी है सरसों पीली
आसमां है नीली नीली
प्रकृति की देख हरियाली
मन कहे बसंत ए बहार आ गई
सजनी मंद मंद यूं मुस्कुराए रही
नैनो में सपने सजाए रही
ऑंचल ये हवा उड़ाए रही
शायद बसंत ए बहार आ गई
रंग बिरंगी बसुन्धरा
प्रेम रंग सुनाए रही
प्यार की उमंगें जगी
शायद बसंत ए बहार आ गई
अमवा की डाल से मधुमाती गंध उठ रही
प्रकृति अपनी सुन्दरता से मीठी रस घोल रही
अलौकिक अनोखी छटा है बिखर रही
लगता है बसंत ए बहार आ गई
कुहू कुहू बोल रही कोयलिया
राधा की झनक रही पायलिया
पनघट पर बैठी कान्हा की राह निहार रही
शायद बसंत ए बहार आ गई
शमां रूहानी सी लग रही
पूरवया पंख डोलाय रही
नए रंग के साथ मधुमास भाए रही
शायद बसंत ए बहार आ गई।
