बरसात
बरसात
हुई बरसात उस दिन फिर,
मुझे तुम याद आए थे।
संग झूमते थे हम बारिश के मौसम में,
हाॅं उस दिन वो लम्हें फिर मुस्कुराऐं थे।
पकड़कर हाथ जब मेरा,
कहते थे अक्सर तुम,
की बारिश हो रही है अब,
क्यूॅं ना इन लम्हों को जिया जाए ?
जा रहा दूजा सावन भी प्रियतम जी,
शिकायत है मेरी तुम क्यूॅं ना घर आए ?
माना की पहली निष्ठा,तुम्हारी है वतन पे।
पर आ जाना थोड़ा जल्दी खाकर रहम इस जोगन पे।

