STORYMIRROR

बरसात की शाम

बरसात की शाम

1 min
14K


बरसात की एक शाम आई

चलो ये मेरे भी कुछ काम आई


वो शाम मेरे लिए कुछ ख़ास थी

मंगरू को भी इन्दर देवता से यही आस थी

और पपीहे को भी तो इन्ही बूंदों की प्यास थी


मिट्टी की खुशबू महसूस हुई उस दिन

तो लगा की किस बीहड़ वन में आ गया हूँ

पर अपने भुसौले पे जोर डाला तो एहसास हुआ कि

अब तक जहाँ भटक रहा था, वो बीहड़ था


कितने दिनों से इस मौसम का इंतज़ार था

प्यासी, व्याकुल धरती के लिए ये शीतल चन्दन का हार था

फिर बिजली का कड़कना क्यों लगा कि

जैसे किसी का हमारी संवेदनाओ पे प्रहार था ?


हमने सोचा चलो अब हमें थोड़ी शांति मिलेगी

पेड़ - पौधे, अन्य जीव, छोटे या बड़े, सब शांत हो गए थे

हमें भी अच्छा लगा


पर कुछ तो था जो व्याकुल था

शायद वो हमारा मन ही था

खैर छोड़ो इस बरसात से तो वो शांत होने से रहा


पर इस आंधी तूफान से मौज, मज़ा, मस्ती तमाम आई

जब बरसात की वो शाम आई

और तब लगा की पहली बार ये मेरे काम आई...।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama