बरसात के दिन
बरसात के दिन
बारिश के मौसम में
रह गया दिल सूखा
उमस साथ छोड़ती नहीं
तन-मन रहा भूखा..!
गुज़रे वक़्त की कहानियों में
सुने थे हम ज़ुबानी
रात बैठकर लोग गुजारते थे
बरसता था इतना पानी..!
उँगलियाँ पैरों की सड़ कर
भात बन जाती थी जब
उस झमाझम बारिश से
मगर लोग मजबूर थे जीने में यहाँ ..!
समय की रुसवाई कहो
या वक़्त की नज़ाकत है यह
आज सावन में जब धूल उड़ती जमीं से
ग़ायब सी हो गयी वो चमक बिजली की
बाद बादल गरजते थे जो
वही आज लोग निहारते हैं बादल
कभी डर से अंदर भागते थे जो..!
दादुर भी बेवफ़ा से हुये सब
टर्र-टर्र की मधुर धुन गाते थे जो
वही ज़िस्म रहते आज पसीने से तर-बतर
कभी सावन की फुहारों से नहाते थे जो..!
नहीं रहे अब वो मौसम
सारी दुनिया जल रही है
बरसात क्या गर्मी ठण्ड भी नहीं अब
अपने कर्मों की सज़ा दुनिया भुगत रही है ।।