ब्रह्ममुहूर्त
ब्रह्ममुहूर्त
तब रात जब ब्लडी मैरी से
निगाहें मिलाने उठा
आईने को देखा
मेरी नाक, आँख , दिखी साथ
मुख से निकलता सा कुछ दिखा
हाथ सा छोटा
दिखा जो वो सटीक था ,
वो चीरता निकला मुख से
दबोचने गर्दन
ऐसे जैसे कि कर रखा हो
उस हाथ ने पूर्ण समर्पण
खुद का अपने कर्म से
तभी दूसरा हाथ
मेरी छाती चीर के निकला
उंगलियों से मेरी आँखों को नोचने
बेशक नोचा भी, उससे निकला रक्त
बहता
चला मेरी लबों को छूता हुआ ,
तब बंद हुआ मेरा मुख भी
हृदय , नेत्र , मुख तबाह कर
रक्त फैलता गया मुख से बदन तक
हुआ तब बेहोश सर
जब उठा तब पाया हाथ में कलम
बिस्तर पर बदन , आँखें सजल
वक्ष की धुक धुकी सामान्य ।
इन वारदातों से
स्पष्ट है छवि अंदर के
उस पैरासाइट की
जो पलता है मेरे इंद्रियों की
पराधीनता पे , निकलता है
ब्लडी मैरी के ब्रह्ममुहूर्त में।