रौशनी
रौशनी
उस 100 वॉट के बल्ब के
इर्द गिर्द मंडराते कीटों को देख
मैं प्रकृति के उस समय की
कल्पना करने की कोशिश में हूँ
जब ये सारे कीट एक समान थे
न इनके नाम देने वाला कोई था
न इनके गुणों की तुलना करने वाला
तब ये सब एक रूप ,
इसी भू पे डोलते थे ।
बाद में इनमे भेद आया
इनके शरीर के गठन में विशेषताएं आई
लाने वाले ये स्वयं थे ,
जो तब रौशनी की खोज में थे
वो आज भी जलकर मर रहे हैं
जो अंधेरे में संयम बांधे थे
वो आज जुगनू बन रौशनी जला रहे हैं
प्रकृति के शुरू से ही
ये यथार्थ सामने मानव का पड़ा है
अंधेरा इंद्रियों को संयम से
इस्तेमाल करना सिखाता है
असल में मानव को अंधा
रौशनी बनाता है ।