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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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बरगद

बरगद

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गए वक्त से ना बनो दोस्त।

कभी मुड़ भी लिया करो।

बरगद तले जी लिया करो।

जिंदगी ने क्या रंग दिखाया ।

हर उजले रंग को सफेद बनाया।


है तो बड़ी लेकिन छिद्रों से सनी है। 

चादर छोटी फिर क्या बुरी है ।

सच की ही तो होती जमी है।


वह थे कि नापते ही रह गए।

और हम कद में बढ़ते ही चले गए।

आज थककर वो बैठ चुके हैं। 

और हम मंजिल पर पहुंच चुके हैं।


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