आज थककर वो बैठ चुके हैं। और हम मंजिल पर पहुंच चुके हैं। आज थककर वो बैठ चुके हैं। और हम मंजिल पर पहुंच चुके हैं।
नोचते हैं खींचते हैं गिद्धों के जैसे, कर दिए हैं घाव हजारों छिद्रों के जैसे, नोचते हैं खींचते हैं गिद्धों के जैसे, कर दिए हैं घाव हजारों छिद्रों के जैसे,