दुःख-तकलीफ मां-बाप का सह नहीं पाती हैं बेटियां दुःख-तकलीफ मां-बाप का सह नहीं पाती हैं बेटियां
नोचते हैं खींचते हैं गिद्धों के जैसे, कर दिए हैं घाव हजारों छिद्रों के जैसे, नोचते हैं खींचते हैं गिद्धों के जैसे, कर दिए हैं घाव हजारों छिद्रों के जैसे,
ज़िंदगी तुझे क्या दोष दूँ...तेरी वज़ह से तो जिंदा हूँ। ज़िंदगी तुझे क्या दोष दूँ...तेरी वज़ह से तो जिंदा हूँ।