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मानसिंह मातासर

Abstract

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मानसिंह मातासर

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बरगद की छाँव

बरगद की छाँव

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उँगली पकड़ चलना सीखा,

जानी ये हमने दुनियादारी।

हमें जिताने हराया खुद को,

खपा कर उम्र अपनी सारी।


इनकी छाँव में ही पले-बढ़े,

इनकी छाँव में गुलजार हुए।

हमारा जीना भी मरण होगा,

यदि ये कभी निराधार हुए।


खूब तरक्की कर लेंगें भले,

दुनिया में भी छा जाएँगे।

लेकिन जो कर्ज हैं हम पर,

जीवन में चुका न पाएँगे ।


दिल में इनके नेह की नदियाँ,

इन्हीं के दिल में बसता गाँव।

शानो-शौकत में भी रखना याद,

मात-पिता हैं बरगद की छाँव।


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