STORYMIRROR

Yogesh Suhagwati Goyal

Drama

5.0  

Yogesh Suhagwati Goyal

Drama

बरगद आजकल

बरगद आजकल

1 min
15.7K


अटल, अडिग, विशाल बूढ़े पेड़ को देख कर लगता है

जैसे कोई ज्ञानी ध्यानी बाबा, आसन जमाकर बैठा है

पेड़ की कुछ झूलती जटायें जो जमीन से जुड़ गयी हैं

ऐसा लगता है जैसे कोई दाढ़ी जमीन में घुस गयी हैं


सन्तान प्राप्ति के लिये, हिन्दुओं का पूजनीय बरगद

स्वच्छ वायु, छाँव, चिड़ियों का बसेरा, थके को डेरा

कट कर भी कितना काम आता, कितनी देह जलाता

कभी किसी से कुछ नहीं लेता, सिर्फ देना ही जानता


बरगद जो मिट्टी से जुड़कर, अपना विस्तार करता है

इसलिए ये पेड सबसे स्थिर और शक्तिशाली होता है

आज के क्रूर भौतिकवाद में, बरगद मिटते जा रहे हैं

उनकी जगह इन्सान खुद ही, बरगद बनते जा रहे है


आजकल कदम कदम पर फर्जी बरगदों की भरमार है

नये पौधे पनपें तो कैसे, यहाँ तो जगह ही बीमार है

सच्चे बरगद सिर्फ देते हैं, हजारों का सहारा बनते हैं

फर्जी बरगद सिर्फ लेते हैं, हजारों पर बोझ बनते हैं


आज विस्तारवाद का युग है, परिवारवाद का युग है

आज साम्राज्यवाद का युग है, बरगदवाद का युग है

“योगी” सही ही कहा है, जहाँ बरगदों की भरमार हो

वहां पौधे तो क्या, झाड़ी और घास भी नहीं पनपते...!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama