बरेलवी जी की रचना से प्रेरित
बरेलवी जी की रचना से प्रेरित
नसीहत काम की है गौ़र फरमाना ज़रुरी है
ज़माने को नहीं, खुद को ही समझाना ज़रूरी है
ज़रूरी ये नहीं जैसे भी हो वैसे दिखाई दो
जहाँ को चाहिए, वैसा नज़र आना ज़रूरी है
ख़ुलूसी ही नहीं औसाफ़ वालों के लिए काफ़ी
ख़राबी भाँप के लोगों की, बच पाना ज़रूरी है
अगर अच्छाई की हो बात, तो आती समझ में भी
यहाँ तो ऐब भी सूर्खी में चमकाना ज़रूरी है
न मानेगा, तकाज़े लाख, दिल है तो, करेगा ही
किसी अतफ़ाल की मानींद मनवाना ज़रूरी है
टिकेगी कब तलक ये खोखली हो के गुमानी यूँ
बड़ी बिस्मार है दीवार, ढह जाना ज़रूरी है
कहो जा के उन्हें, बेख़ौफ़ हो के जी रहे हैं जो
खुदा से ना सही पर खुद पे डर लाना ज़रूरी है
कभी मिलने न जायेंगे उसे, ठाना क़सम खा के,
उसे मिलकर ज़रा ये बात बतलाना ज़रूरी है।