बदलाव
बदलाव

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सूखी नदिया, में नाव नहीं
पिपल अंबिया की छांव नहीं
कुछ और वो था, पर ये तो नहीं
अब गाँव मेरा वो गाँव नहीं
खेतों पे फसलें खिलतीं थीं
रोटी गुड़ धानी मिलती थींं
इमारत खा गईं खेत कई
अब गाँव मेरा वो गाँव नहीं
घर कच्चे थे, मन सच्चे थे
साझे चूल्हे भी पक्के थे
बंधी डोरी कट गई कहीं
अब गाँव मेरा वो गाँव नहीं
बदली है शक्ल बदली है सूरत
बदली है हवा, बदली है सिरत
कुछ तेज़, बदलती चाल बनी
अब गाँव मेरा वो गाँव नहीं
विकसित भी हुआ है, अच्छा है
शहरी भी हुआ है,अच्छा है
पर ये भी सच कुछ कम तो नहीं,
अब गाँव मेरा वो गाँव नहीं