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Medha Antani

Others

5.0  

Medha Antani

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चाहतें

चाहतें

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लास्ट बेंच से,

फर्स्ट बेंच तक,

उड़ते थे कबूतर !

नज़रों के कबूतर !


आँखों से लास्ट बेंच ने

पैगाम उड़ाया,

फर्स्ट बेंच ने पलकें झुकाये

पढ़ लिया।


कभी कभी तो वो

आपस में टकराये भी !

"मैं तुम से.."

"पता है !"

"क्या तुम भी मुझ से..?"

"हाँ ..!"


और फिर,

फर्स्ट बेंच से लास्ट बेंच तक,

रंग, खुशबू, बादल,

तितली, परी, शहज़ादा..

क्या क्या सिलसिले चलते थे !


बस, है तो इतना ही किस्सा ।


कुछ कमसिन चाहतें 

पनपती है बेंच पे,

सिमटती है बेंच पे,

पर उसकी यादें

रह जाती है बन के,

बेंचमार्क।


चलते चलते ज़िंदगियां 

आ आ के वहीं

रुक जाती हैं

.. अक्सर !


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