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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics

☆बोलती खामोशी☆÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

☆बोलती खामोशी☆÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

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लफ्ज कहाँ से लाए 

हैैं लब सिले

दरकिनार किया

हर शिकवे गिले

रूह सिसक

रह गई खड़ी

नादां समझता


कुुछ तभी

खामोशी भेद 

सारा बोल पड़ी।।

अश्क पलक के

ओट में सिमटे

धड़कनें थमती दिखीं

बेचैन हसरतेें


ठिठक हीं गयीं

अरमां की टूूूटी लड़ी

कसक न कहा

कुुछ भी कभी

खामोशी भेेद

सारा बोल पड़ी।


मुद्दई बन हैैं खड़े

रहबर जबकि

हम ही रहें

यकीन था

रहनुमा संंग है


यकीं की छूटी कड़ी

जज्बात समेटते

रह गए 

खामोशी भेद 

सारा बोल पड़ी।


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