बोली जिन्दगी
बोली जिन्दगी
सुन मेरी जिन्दगी
तू बता
है मालूूम क्या तुझे
मेरी खता?
क्या है तुुुझे पता
वे क्यूँ हैं
रूठे मुुुुझसे,
मैं उतरता कहाँ
नही हूँ खरा,
किस कसौटी पर हैैं
वे परखते मुझको
है खबर क्या
इस बात की तुुुुझको?
क्यूँ नही हूूूूँ भाता उनको
चाहता राह मेें तेरी
संग अपने जिनको?
क्या है तकदीर मेरी यही
या फिर मर्जी है यही तेरी
कि गर है मुझे
तुझ संग जीना
तो निश्चित पाएगा
गम का यह जहर पीना?
सुनकर मुझसे यह
हँसी खिलखिला जिन्दगी
थी उसे भी
मुझसे उम्र भर की बंंदगी,
थी उसे यह भी खबर
परेशाां हो,इस तूफां में
कर सकता हूूँ
उसे उनके नाम मैैं नजर,
तभी तो उसने मुझे
यह समझाया
अपना माना और
मुझे बताया
कि हर कदम गम
तब आती है जान बेदम तो दम,
कहती हूूूूँ मैं मेरी
यह भी सुन
सुख के भरे गागर में
कुछ दुख,तू उसे चुन
हरपल सही नही यह रोना
तपकर तब ही
निखर सकता है तू
तपता और निखरता जैसे सोना।।