बंदिशें
बंदिशें
कुछ बंदिशें हों उन मुस्कुराहटों पे
जो मुस्कुराकर दर्द बयां ना करते
कुछ बंदिशें हों उन अश्कों पे
जो छलकते छलकते दिल में दफ्न यादों को फिर ना जीते
कुछ बंदिशें हों उन ख्वाहिशों पे
जो अधूरे रहकर ताउम्र नश्तर सी यूं न चुभते
कुछ बंदिशें हों उन लम्हों पे
जो इतंजार में पल पल दूरियां ना बढ़ाते
कुछ बंदिशें हों उन अंधेरी रातों पे
जो रात भर जागती आंखों के हाले दिल ना कहते
कुछ बंदिशें हों फिजा में लिपटी उन चांदनी पे
जो हर एहसासों को चेहरे पर ना झलकाते
कुछ बंदिशें हों उन रिश्तों पे
जो जुड़कर यूं बेवजह ना बिखरते
और कुछ बंदिशें हों उस वक्त पे
जो खुशियों के सतरंगी रंगों में घुल आसमां में ठहर जाते...।