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Vigyan Prakash

Romance

5.0  

Vigyan Prakash

Romance

बन जाओ ना मेरी कविता

बन जाओ ना मेरी कविता

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बन जाओ ना मेरी कविता,

क्या जायेगा?

बस कुछ लोग,

नाम तुम्हारा पा जायेंगे।

पर एक नाम के,

कई लोग नहीं होते क्या?

जाने ये इतनी सब बातें,

मैं क्यों करता हूँ।

वो भी जब तुम पास मेरे,

होते ही ना हो।

जाने ख्वाबों के टुकड़ो में,

क्या मिलता है।

हाथ पकड़ उनसे कहानी,

बुन देता हूँ।

मैं पागल सा एक सन्यासी,

या शायर हूँ।

बस एक चेहरे में दिलचस्पी,

क्यों लेता हूँ। 


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