बज रही है बांसुरी
बज रही है बांसुरी
बज रही है बांसुरी फिर उपवन में गोपी गोपियाँ हों बलिहारी,
सखियों के संग होकर राधिका चली,रास रचाए कृष्ण मुरारी,
कृष्ण की मुरली की मधुर धुन गूंज रही थी जब-जब वृंदावन में
कान्हा के उन नग्मों को सुनकर पनघट पर राधा हुई मतवारी,
नभ में बदरी जब घिरती जाती, मधुर संगीत वो सुनाती देखो,
नए-नए राग संग नदियाँ भी रह-रहकर बलखाती जाती देखो,
हर वन-उपवन में सुंदर से फूलों संग गुलशन बांट रहा खुशबू,
सुर और ताल मिलकर, हर नगमों से महक रही है डाली देखो,
सुनसान अंधेरी उस रात में सरसराती जब तेज हवा बह रही,
उस महकते उपवन में पत्ते डाली एक नया राग सुनाते देखो,
कृष्ण की बांसुरी संग भौरों की गुंजन कानों में कुछ कहती है,
कली-कली में मंडराते भौरें उनके उपवन की खुशहाली देखो,
राधिका को अपने सम्मुख पाकर मंद- मंद मुस्कुराते माधव,
सावन का मौसम भर लाया यौवन हर चितवन मतवाली देखो,
हर गीत उनकी धुन से प्रतिबिंबित ,सब उनसे छविमान हुआ,
कृष्ण की यह माया नित प्रीत भरी ,जग की रीत निराली देखो
इन प्यार के नग्मों को सुनकर,खिल गए फूल झूम रहे तरुवर,
मिटा मन का अंधियारा, चमकते दिन की यह उजियाली देखो,
धरती महकी, मेघों से उस सूखी सरिता में फिर भर आया जल
नाच रहे आज मस्ती में, खुशियों से छलक रहा हर आंसू देखो,
हर नग्मों में जान बसी संभव है तुमको यहाँ विश्वास ना होगा,
हर ताल में और हर सुर में छिपी हुई एक नवीन कहानी देखो,
बहुत हुआ अब वंचित ना रहना चाहता मैं तो इन हवाओं से,
कान्हा की मधुर बंसी की तान सुन झूम रही राधा रानी देखोII