बज गये पाँच
बज गये पाँच


बज गये पाँच
उतर लिए
ऑफिस की सीढ़ियाँ
बीत गया एक और दिन।
ऑफिस से घर को जोड़ती
कहीं चौड़ी
कहीं सँकरी सड़क
सड़क के दोनों ओर
छितराया जीवन।
मौन-बतकही
प्यार-नफरत
खुशी-गम
सबकी सुध लेते
बेसुध से हम
डूब गया सूरज।
बीत गयी साँझ
आगे है
सपनों वाली रात
कल फिर एक नया
काम जुटा दिन।