बिन छुए भी तेरा छूना
बिन छुए भी तेरा छूना
याद आते हैं वो लम्हे
जब साँझ ढले
आसमाँ को तकते हुए
झरोखे के नीचे से तुम जाते थे।
पाते ही मेरी आहट
कैसे प्यार से तुम मुस्कुराते थे।
और मैं हर पल इस इंतज़ार में
कि कब दीदार हो
हक़ीक़त में तब्दील
कोई मेरा ख़्याल हो।
यूँ ही इत्तफ़ाक़ से मिल जाया करते थे
नज़रें झुकाए
क़रीब से गुज़र जाया करते थे।
वो अहसास भी क्या अजब था
बिन छुए भी तेरा छूना ग़ज़ब था।

