बिखरे रंग आज भी रंगते हैं
बिखरे रंग आज भी रंगते हैं
मैं अब उन गलियों से कम गुजरता हूँ
अब वो महक हवाओं में घुली नहीं
मैं अब उन चौराहों पे कम रुकता नहीं
अब वो उस चौराहे से गुजरती नहीं
मैं अब नहीं जाता बहाने
बनाकर उसके कॉलेज में
अब वो कॉलेज में पढ़ती नहीं
आज मेरी ज़िंदगी के कैनवास पर
कोई चित्र बनते नहीं
उसकी सूरत आँखों में है
बस दिल मे उतरती नहीं
अब वो दिल मे शायद रहती नहीं।
ख्वाबों अब लेकिन आज भी वो जब आती है
मेरी न होकर के भी जो मुस्कुराती है
आज भी टूटे दिल एक दूसरे से जुड़ते है
पुरानी कूची में सूखे पड़े रंगों से
मेरे दिल के कोरे कैनवास पर, फिर से
बिखरे रंग आज भी रंगते हैं।