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Shraddha Gaur

Abstract

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Shraddha Gaur

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बीती रात

बीती रात

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घनघोर बदरी के बीच जब मचलते

बादलों ने ढक कर रखा था चांद को,

और चकोर कर रहा था क्रंदन उसके इंतजार को।


घटा के संग पवन भी शीतल बहती रही,

वियोग की गाथा प्रेमी युगल के हृदय में मचलती गई।


झर झर करते जो जल धारा संग करते थे बैठ बालक अबोध,

कभी क्रीड़ा संग ग्वालों के करते ओर तो कभी नदियां के छोर।


चहक रहे थे पक्षी सारे,गुंजन हुआ जब चहुँओर

सब जन हुए वहीं एकत्रित जहां हुआ था मनमोहक शोर।


भया प्रकट यह रहस्य कभी का, बीती रात कमल दल फूले।


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