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Stuti Singh

Abstract Inspirational

3.9  

Stuti Singh

Abstract Inspirational

बीते लम्हे

बीते लम्हे

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बीते लम्हे बहुत याद आते हैं,

संग में अपने बहुत से जज़्बात लाते हैं।

कुछ सिर्फ खामोशी में सिमट जाते हैं,

तो कुछ ठहाकों में लिपट जाते है।

मुस्कुराते है जब ज़िन्दगी से रूबरू होते है,

अक्सर खिलखिलाने से सुकून पाते हैं,

फिर भी वो बीते लम्हे बहुत याद आते हैं।


जो पाया उसे चाहते नहीं हैं,

जो चाहते हैं वो पा पाते नहीं हैं।

जो है जितना है उसमें खुश रहना कभी सिखा ही नहीं,

रोज़ अरमानों की एक नई रसीद बनाते हैं,

सचमुच बीते लम्हे बहुत याद आते है।

 

जो संग में है उसकी कदर नहीं जो छूट गया वो फरिश्ता लगता है,

इन यादों और आँखों के बीच भी अजीब रिश्ता लगता है,

कभी रोए थे हम बचपने में आज उसपे खिलखिलाते है ,

और मुस्कुराते थे जिन लम्हों में आज वही रुलाते है।

ज़िन्दगी के ये तैराने हम समझ ना पाते है,

यह तो सच है कि बीते लम्हे बहुत याद आते हैं।


कभी बचपन की नादानी तो कभी बड़प्पन कि समझदारी ,

एक पल को रुठते थे और दूजे पल फिर वही यारी।

पता ही नहीं चला कि वक़्त पिछड़ गया या हम ज़िन्दगी से,

झूठ कहते हैं कि पीछे मुड़ कर ना देख पाते है,

असलियत में तो बीते लम्हे बहुत याद आते है।

अक्सर हँसा जाते है, अक्सर रुला जाते है,

फिर भी वो बीती यादें बातें और लम्हे बहुत याद आते हैं।



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