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Stuti Singh

Abstract Tragedy

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Stuti Singh

Abstract Tragedy

कीचड़

कीचड़

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लोग कीचड़ से बच के चलते हैं,

और कीचड़ सोचता है कि लोग उससे डर रहें हैं।

काश कुछ लोगों को अपनी औकात मालूम होती,

तो मेरी खामोशी को मेरी हार ना समझते।

अब भला हर भौंकते कुत्ते को पत्थर थोड़े ना मारे जाते हैं,

दो कौड़ी का मुँह उठाकर बहस करने चले आते हैं।

जब मैं चुप हो जाती हूँ तब जवाब वक़्त खुद दे देता है,

और ऐसे कुछ लोगों को उनकी औकात पे पटक देता है।



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