STORYMIRROR

Stuti Singh

Abstract

3  

Stuti Singh

Abstract

हर बार की तरह...

हर बार की तरह...

1 min
234

उसने लूटा ,हम लुट गए हर बार की तरह,

बाद में आंसू मिले हर बार की तरह।

कितने सावन बीत गए इंतेज़ार में उसके,

ये भी सावन जाएगा हर बार की तरह।

कभी हमराज नही होती हैं आंखें नम होने के बाद,

राज़-ए-ग़म बयाँ हो जाएगा हर बार की तरह।

बहुत मुश्किल है सही और गलत का फैसला,

मैं गलत,तुम सही साबित हो जाएगा हर बार की तरह।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract