Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

बीता कल

बीता कल

1 min
137


टहल रहे बादल की मानों,

बचपन का पालना झूल रहा।

और मंदम सी बारिश की फुहार,

जैसे शावर नहला रहा।


सड़कों पे पानी, कागज की नाव,

और उसमें अपनी छपाक-छपाक।

सावन में डलते पेड़ पे झूले,

बचपन याद दिला रहा।


कुछ हुए युवा तो चाय-पकौड़े,

या फिर बाइक पे सवार।

निकलते थे रपटीली सड़कों पर,

वो याराना याद आ रहा।


कुछ रोमांस लिये दिल में प्यार,

वादियों में ढूँढ़ता।

आज उम्र का अंत पड़ाव पर,

भिगो रूह से कुछ कह रहा।


कह रहा कि जी ले आज,

मत तू बीता कल पुकार।

बंद कर यादों की किताब,

ले ले साथ में साथी चार।


करना है याद तो जी के कर,

जी ले हर आता एक पल।

बारिश,बादल और यादों को,

कर खुद को अर्पण हो निश्च्छल।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract