हमारा बचपन
हमारा बचपन
परिवार, एकता और ख़ुशियाँ,
हरा भरा आँगन, गलियाँ।
चहक उठता है उस पल को सब,
जब चहके आकर चिड़िया।।
वक़्त है देना उस पल सबको,
जब सूनी हो मन की गलियाँ।
खींच है लाता उस पल भी जब,
होती सपनों में पारियाँ।।
मैं बड़ा तू छोटा तो क्या,
आवाज़ एक बन कर लड़ियाँ।
रौशन कर दे मिलकर कर घर को,
जैसे हों कोई फुलझड़ियाँ।।
बचपन की वो उछल कूद और,
कुछ तेरी और मेरी बतियाँ।
चुपके से मिलकर तोड़े थे,
कभी अमरूद, नीबू, आमियाँ।।
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छिपा के मम्मी से खाते थे,
पापा पीटेंगे डरते थे।
करते शामिल प्लान में दीदी,
जब गहरी होती थी रतियाँ।।
चादर से मुँह ढ़क लेते थे और,
मम्मी-मम्मी चिल्लाते थे।
और वो दौड़ के आ जाती थीं,
जब डराती छिपकलियाँ।।
लुपक के आँचल में हम उनके,
तब भी डर भगाते थे।
जब गरजते थे बादल और,
कड़कती थी बिजलियाँ।।
ऐसे ही होते हैं अपने,
साथ में पूरे होते हैं सपने।
दादा-दादी क्या हर रिश्ता,
पापा, दीदी, मम्मियाँ।।