STORYMIRROR

Shashank Gupta

Others

3  

Shashank Gupta

Others

गुम होती पहचान

गुम होती पहचान

1 min
386

बदल गयी मेरी पहचान,

जो बदला कि उसका नाम।

लोग बदले, सोच बदली,

और बदला फिर सबका काम।।


जो कभी पगडंडियाँ थीं,

बदली पक्की सड़कों में।

खत्म हुए जो खेत खलिहान,

मॉल मार्ट के अब वो धाम।।


भूल गये कोयल की कुहू-कुहू,

नहीं सुनते अब पिहू-पिहू।

तरस गये सुनने को कान,

बरसाती दादुर की तान।।


सावन के झूले, त्योहारों के मेले,

और उनमें चाटों के ठेले।

सभ्यता और संस्कृति का,

नहीं रहा अब कोई नाम।।


ताऊ-ताई, चाचा-चाची,

रिश्ते कभी पड़ौसी थे।

अंकल-आंटी, मैडम-सर,

जैसे हो गये उनके नाम।।


ऊँचे टावर, ऊँची मंजिल,

गगन को छूने की कोशिश।

है तरक्की सबकी लेकिन,

घुटती साँसें, निकलते प्राण।।


Rate this content
Log in