बीच का ख़याल
बीच का ख़याल
इम्तहान ख़त्म हुए, पुरानी किताबें और कॉपियां
अपने स्थान से निरस्त हुए,
ऐसी ही किसी कॉपी के पन्ने से बनाया
एक जहाज मेरे आँगन में पड़ा था,
उठाया देखा और उसे दूर उड़ा दिया
ख़्याल आया इसे किसने बनाया होगा
बड़े चाव से ऊँची उड़ान भरने के लिए
तेज़ बहती हवा में उड़ाया होगा…
उड़े होंगे इसके साथ दूर आकाश में
उस भोले मन के भविष्य के सपने
गयी होंगी इसके साथ ऊपर और ऊपर
उसकी नज़रें
कोई लड़का होगा या कोई, लड़की
या कोई बीच का?
इस बीच वाले का अक्सर ध्यान भी नहीं आता
लेकिन उनका होना भी सच्चाई है
उनके जीवन में सामान्य से बहुत ज्यादा कठिनाई है,
फिर भी उनका वजूद हमें याद नहीं रहता,
उनकी विपदाओं का एहसास नहीं रहता
ख़ुद से ये प्रश्न पूछ रही हूँ,
उनकी परेशानियाँ सोचने को
मजबूर हो रही हूँ,
पूछती हूँ आपसे कौन उनके साथ है?
अपने समकक्ष उन्हें मानने को
कौन-कौन तैयार है???
