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Deepika Kumari

Romance

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Deepika Kumari

Romance

बिछोह

बिछोह

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जुदाई का दिन था

शाम गमगीन थी

गगन में मेघ थे

कुछ उदासीन सा माहौल था।


उसकी आंखें नम थी

मेरे भी ना कुछ कम थी

मैंने पूछा-यह कैसा साथ था

जब छोड़ना ही हाथ था

तो थामा ही क्यों मुझे

मैं तो पहले मस्त था।


जब जाना ही था तुम्हें

तो आना क्या जरूरी था

मैं खुश था तेरे बिना भी

स्वयं में पूर्ण था और स्वस्थ था


दिल में प्यार जगा मेरे

अब कहती हो सब भूल जा

आदत बन कर मेरी

कह रही हो अलविदा।


जाओ मैं रोकूंगा नहीं तुम्हें

क्योंकि प्यार बंधन नहीं मोह का

यह है भावना शुद्ध प्रेम की

सहूंगा दर्द मैं बिछोह का।


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