भय
भय
थोड़ा भय भी तो ज़रूरी है ज़िन्दगी जीने में
डर नहीं लगेगा तो आगे कैसे बढ़ोगे?
फर्क सिर्फ इतना है कि तुम भय को कितना बढ़ावा देते हो ?
वो बहुत मतलबी है , थोड़ा ज़्यादा प्यार मिल जायेगा तो
दिमाग और अहं में बैठ जाएगा.. निकलेगा नहीं !
रब से भय लगना तो स्वाभाविक है..
दिल से प्रार्थना करो, घूस देकर नहीं !
सबको दिल से अपनाओ, धोखा खाकर सब सीख जाओगे..
फिर डर तो ऐसे ही निकल जाएगा
और क्या चाहिए ज़िन्दगी में ?
स्वास्थ्य अच्छा रखना सर्वप्रथम कर्त्तव्य है हमारा,
क्योंकि मंदिर में ठहरना है तो सफ़ाई तो रखनी ही होगी!
बीमारी का डर, परिणाम का डर
अपने आप तुम्हें शरीर चर्चा करने में मजबूर करते हैं..
है न स्वास्थय ही धन..?
ऐसे ही पूरा संसार है..
अत्याचार हो या दुर्घटनाएं हमेशा ही बिराजमान हैं..
डर के मारे जीना क्यों छोड़ना
एक गहरी सांस लो, हिम्मत बढ़ाओ
और आगे बढ़ते रहो भय को हारा कर।