भूल रहा हूँ
भूल रहा हूँ
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मिल कर बेगानों को
अपनों को खो रहा हुं
इस जहां में अपना
वजूद भूल रहा हुं।
अजीब सी दुनिया में कई
चालें बिछती जा रही है
कुछ खो लिया कुछ पाया है
लेकिन क़ुबूल कर रहा हूं ।
दूसरों पर तोहमत
कैसे रखूं अब मै
जब घर में अपना वजुद
शीशे में ढूंढ रहा हूँ ।
सम्बन्ध की इस दुनिया
को फैलाया बहुत सारा
फूलों की इस बगियाँ
में कांटे पा रहा हूँ ।