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Dr.Ankit Waghela

Abstract

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Dr.Ankit Waghela

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भूख!

भूख!

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साब! वो तो भूख इस कदर जगती है

खाना फिर जनाजे से भी चुराने लगती है,

ये धरम जात छूत अछूत .. बवंडर आप ही खेलो साब,

भूख है , इंसान देख कर ..सौदा नहीं करती है।


शुष्क चहेरे ये बेबसी कहाँ नजर आती है?

अश्क सूख चुके हंसी सिर्फ आप को आती है।

बर्तन सूखे ना पड़े.. यही कशीदगी है साब।

ये हाथ धो कर खाने की बीमारी..आप को होती है,

कोई गलीच, कोई गाली दे कर दे देता है

किसे है मंज़ूर, पर सुख सिर्फ हमें मिलता है।

भूख तो हर चहेरे पे है ना साब,

"पापी पेट का सवाल है"

ये तो आप भी कहते हैं।


शुक्र है खुदा..आप जैसी भूख नहीं हमें,

दो रोटी..चमच भर चावल इसमें ही थमे,

स्वाद और संतोष..दोनों अंकित परिभाषा ही है साब

इस दौड़ में हम कम से कम किसी की दुनिया नहीं लूटते हैं

साब! वो तो भूख इस कदर जगती है,

खाना फिर जनाजे से भी चुराने लगती है।


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